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रायपुर (अविरल समाचार) । दिगम्बर जैन परम्परानुसार विगत चार महीनों से जारी चातुर्मास का समापन हुआ। दिगम्बर जैन खण्डेलवाल मंदिर फाफाडीह में विराजित दिगम्बर जैन परमपूज्य आचार्य शिरोमणी 108 आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि 108 प्रसम सागरजी एवं मुनि सुयश सागर जी बुधवार को मंदिर से विहार कर गए। यहां से वे टैगोरनगर जैन मंदिर पहुंचे और गुरुवार को राजिम के लिए प्रस्थान करेंगे। इसके साथ ही भव्य चातुर्मास का समापन हो गया।
दिगम्बर जैन खंडेलवाल पंचायत के अध्यक्ष अरविंद बड़जात्या और महामंत्री सुरेश पाटनी ने बताया कि 4 नवम्बर से मुनिराजों के सानिध्य में कल्पद्रुम विधान होने के बाद आज 13 नवम्बर को मुनिराजों की पिच्छी का परिवर्तन किया गया। सुबह मंदिर में श्रीजी का महाभिषेक कर शांतिधारा प्रवाहित की गई। महिला मंडल की ओर से सामूहिक पूजन के बाद चातुर्मास में सहयोग करने वालों को अभिनंदन किया गया।
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उन्होंने बताया कि दिगम्बर जैन मुनि अपने साथ पिच्छी रखते हैं जो मोरपंख की बनी होती है। इसे विभिन्न कार्यों के लिए वे उपयोग में लाते हैं। वर्ष में एक बार चातुर्मास के दौरान इसे बदला जाता है। इसे बनाने की अपनी विधि होती है। मोर के पंख जो झड़कर स्वयं नीचे गिरते हैं उसे जंगल से चुनकर लाया जाता है और पिच्छी का निर्माण किया जाता है। रायपुर के समाज के कुछ लोगों को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसका उन्होंने निर्वहन किया। पुरानी पिच्छी मुनिराजों ने दो परिवारों को सौंप दी। इसके बाद मुनिराज फाफाडीह मंदिर से विहार कर टैगोर नगर के लिए प्रस्थान किए। वहां से मुनिराज गुरुवार को राजिम के लिए विहार करेंगे।
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